__ 25 मई को अमेरिका में श्वेत पुलिस अधिकारी के द्वारा की गई अश्वेत जार्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद अमेरिका में लगभग 15 दिन भारी आगजनी और तोड़फोड़ हुई (अश्वेत आन्दोलन के समर्थन में यूरोप के कई देशों में प्रदर्शन हुय, तोड़ फोड़ की घटनायें हुई) लन्दन में भी अश्वेतों के पक्ष में प्रदर्शन हुये उसमें उग्रता और तोडफोड़ हुइ। अभी अमेरिका में फिर एक अश्वेत की पुलिस गोली से मौत हो गयीइस घटना ने अश्वेतों के शाँत होते आन्दोलन को फिर से हवा दे दीइस बीच लन्दन मे एक नई घटना सामने आई कि जो अश्वेत समर्थक आन्दोलनकारी मूर्तियों की तोड़फोड़ कर रहे थे उनके सामने मूर्ति बचाने वाले लोग भी आ गये। इस घटना का मैं इसलिये उल्लेख कर रहा हूँ कि हिंसक और तोड़फोड़ करने वाले प्रदर्शनों के विरूद्ध भी एक प्रतिक्रिया शुरू हो गयी है
मैं अश्वेत भाइयों के आन्दोलन के पक्ष में हूँ और रंगभेद के पूर्णतः खिलाफ हूँरंगभेद का व्यवहार एक क्रूर अमानवीयता है। और एक प्रकार की आक्रमक अज्ञानता है। चमड़ी के रंग से योग्यता का कोई संबंध नहीं होता। योग्यता का संबंध तो बौद्धिक क्षमता आर उससे मिलने वाले अवसर से होता है। नदी का पानी जब बाढ़ में बह जाता है तो उसका कोई प्रयोग समाज के लिये नहीं हो पाता, परन्तु जब वह नहरों के माध्यम से सूखे खेत में पहुँच जाता है तो वह कृषि के लिये वरदान बन जाता है, इसी प्रकार मानव योग्यता या प्रतिभा का संबंध उस अवसर रूपी नहर के जैसा है। अमेरिका की व्यवस्था में गोरे लोगों का सभी क्षेत्रों में प्रभुत्व रहा है चाहे वह शिक्षा हो, सम्पत्ति हो, शक्ति हो, या सत्ता हो और इसकी वजह उनका गोरा होना है ना कि कोई विशेष योग्य होना है बल्कि उन्हें सत्ता के माध्यम से अवसर प्राप्त होता है
पिछले लगभग 90 वर्षों में अमेरिकी व्यवस्था में कई बदलाव आये है, परन्त ये बदलाव अभी तक अपने निर्णायक बिन्दु तक नहीं पहुँच सकेजिनके हाथ व्यवस्था है वे एक हाथ से समानता की ओर बढ़ने का निर्णय करते है, और दूसरी ओर, दूसरे हाथ से उन कदमों को बढ़ने से रोकते हैयह केवल अमेरिका में ही नहीं बल्कि एक अर्थ में यह वैश्विक प्रवृत्ति है और दुनिया में सभी शक्तिशाली समूह कमजोर समूहों को कमजोर रखना चाहते है। इसलिये अमेरिका में लगभग 60-70 वर्ष पहले प्रिंसिपल आफ डायवर्सिटो की नीति शुरू हुई थी, परन्तु पहले से अब तक वह मंजिल तक नहीं पहुँच सकी। श्वेत की औसत वार्षिक आय अश्वेत से 31 लाख रू. ज्यादा होती है। नीचे अहोदो पर भी अधिक वेतन मान पाने वाले ज्यादातर श्वेत होते है। अमेरिका की बहुराष्ट्रीय या कॉरपोरेट कम्पनियों में मात्र 4 अश्वेत मुख्य कार्यपालक अधिकारी है, और कभी - कभी या कहें कि अमूमन अश्वेतों को गुलदस्ते के दिखावटी फूल के समान ईस्तमाल किया जाता है। ये 4 सी.ई.ओ. मुख्य कार्यपालक अधिकारी भी इसलिये बनाये गये कि ताकि अश्वेत बाहुल्य इलाको के मजदूरों को कम्पनियों में लाने या लगाने के लिये एक प्रकार का आकर्षण और अपनत्व की भावना का शोषण हो सके।
जहाँ अश्वेत श्रमिक ज्यादा होते है, वहाँ अश्वेत सी.ई.ओ. उनके हड़ताल या आन्दोलन को रोकने या हल कराने में ज्यादा कारगर साबित होते है, अगर उन कम्पनियों के शेयर्स पूँजी का आँकड़ा निकाला जाये जिनमें ये 4 सी.ई.ओ. है, उनमें अश्वेतों के पास शेयर नाम मात्र के ही है, यानि यह भी एक श्वेत सत्ता की रणनीति हैअभी अमेरिका में कोरोना से जिनकी मृत्यु हुई है, उसमें लगभग तीन चौथाई अश्वेत है और न्यूयॉर्क को छोड़कर आसपास के उन समुद्री टापुओं पर पहुँच गये जिन्हें खरीदकर पहले से अपना उपनिवेश बनाया हुआ हैकमावेश यह स्थिति समूची दुनिया की हैभारत में भी कोरोना संक्रमित और कोरोना से मृतक लोगों की आर्थिक, सामाजिक स्थिति का अगर विश्लेषण किया जाये तो इन संक्रमित या मृतका में शायद ही कोई अरबपति हो
अमेरिकी श्वेत सत्ता ने हिंसक अश्वेत आन्दोलन को कमजोर करने के लिये जून के प्रथम सप्ताह में ही एक अश्वेत को सैन्य मुखिया बना दिया ताकि अश्वेत विद्रोह थम जाये और यदि हिंसा को रोकने के लिये गोलियाँ चलाना पड़े तो उसके लिये अश्वेत साथी को जिम्मेदार ठहराया जा सके। ऐसा प्रयोग अमेरिका तब भी कर चुका है, जब 11/9 के आतंकी हमले के बाद उसे इस्लामिक देशों पर हमला करना था तब भी एक अश्वेत को एक सेना का मुखिया और बाद में विदेश मंत्री बनाया था, हालांकि सफलता मिलने के बाद उन्हें फेंक दिया गया।
अश्वेत आन्दोलनकारी मित्रों से भी मेरा कहना है कि हिंसा की स्यिाही जल्दी सूख जाती है। आज मुश्किल से 15-16 दिनों में हिंसक आन्दोलन ठंडा पड़ गया, जबकि अहिंसा की धार कभी नहीं सूखती। उन्हें महात्मा गाँधी से प्रेरणा लेना चाहिये और सीखना चाहिये कि महात्मा गाँधी ने 21 वर्षों तक दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के खिलाफ होने वाले नस्लीय और रंगभेदी व्यवहार के खिलाफ आन्दोलन जीवित रखा। क्योंकि उनकी भाषा अहिंसा और प्रेम की थी जिसमें घृणा और हिंसा का स्थान नाम मात्र भी नहीं था। घृणा व हिंसा के आधार पर स्थाई बदलाव नहीं हो सकता
हिंसा से आन्दोलन का लक्ष्य सीमित हो जाता है। अमेरिका में जार्ज फ्लायड की हत्या के खिलाफ चल रहे आन्दोलन के परिणाम स्वरूप यदि श्वेत अधिकारी को सजा हो भी गयी तो क्या इससे रंगभेद या नस्लभेद समाप्त हो सकेगा और क्या अमेरिका या दुनिया की श्वेत सत्ता या व्यवस्था बदल जायेगी? मैं उनके आन्दोलन को नकार नहीं रहा हूँ, बल्कि उसे सैल्यूट करता हूँ, और उनका अभिनन्दन करता हूँ कि उन्होंने अमेरिका और दुनिया में समाज में छिपी हुई गंदगी को सबके सामने ला दिया, पर सवाल उठता है कि इसके आगे क्या? हालांकि कुछ राज्यों में अब कुछ स्वर पुलिस के अधिकारों को कम करने या बजट कम करने को लेकर उभरे हैबजट कम भी किया गया है पर, संघीय बजट उसकी कमी को पूरा करने देगाफिर पुलिस का नस्लवादो आपराधिक आचरण कोई कानून संगत नहीं हवह तो कानूनों का उल्लंघन है? अतः इसके कई दूरगामी परिणाम निकलेंग यह लगता नहीं है। अश्वेत आंदोलन को लेकर मेरे निम्न सुझाव है :
1. मैं अश्वेत आन्दोलनकारी मित्रों से कहना चाहता हूँ कि उन्हें सम्पत्ति के विशाल संग्रह के कारणों को खोजना होगा और उसके उपाय सोचना होंगेबड़ी मशीन और बड़ी तकनीक, यह सम्पत्ति के अपार संग्रहण का मुख्य कारक है, इसमें मशीन इतनी शक्तिवान हो जाती है कि वह केवल एक बटन दबाने से हजारों लाखों लोगों के बराबर उत्पादन कर देती हैइसी से बेरोजगारी जन्म लेती है पूँजीवाद पैदा होता है, और आर्थिक विषमता पैदा होती है, जो कालान्तर में रंगभेदी और नस्लभेदी व्यवस्था के लिये मजबूत आधार बन जाती है। अगर अश्वेत आन्दोलन अब उत्पादन के छोटे यंत्रों और उनके उत्पादों की खरीद की ओर बढ़ेगा तो श्वेत सत्ता चरमरा कर ढह जायेगी।
2. उन्हें श्वेत कम्पनियों के विलासी उत्पादों का बहिष्कार करना चाहिय । अमेरिका में चमड़ी के रंग को बदलने यानि काले रंग को गोरा करने के लिये जो क्रीम आदि का व्यापार है वह लाखों करोड़ों का हैक्या काला रंग बदलकर गोरा बनाना यह अपनी ही कौम या नस्ल का अपमान नही है? क्या यह हीन भावना नहीं है? बल्कि चमड़ी का रंग बदलने के लिए बाह्य प्रयोगों की जगह उन्हें असमानता के टापूओं को गिराकर समतल करना चाहिये, जिससे अंतररंगीय विवाह बढ़े और गोरे काले के बजाय एक मिश्रित रंग की कौम या अमेरिकी तैयार हो सके
3. सारी दुनिया में श्वेतों की आबादी जिसमें हम भारतीय भी शामिल है। लगभग 5.5 अरब के आस-पास है और अश्वेत आबादी वमुश्किल से ढाई अरब के आसपास हैअगर एक बार महात्मा गाँधी के दर्शन और डॉ. लोहिया के विश्व संसद के सपने में रंग भर दिये जाये तो समूची दुनिया में अश्वेत राज होगा। डॉ. लोहिया ने अपनी एक पुस्तक सप्त क्रान्तियों में आज से लगभग 60 वर्ष पहले दुनिया के लिये जो क्रान्तिया बताई थी उनमें रंगभेद की समाप्ति, आर्थिक समानता, सामाजिक समानता तो थी ही साथ में बालिग मताधिकार के द्वारा चुनी गयी विश्व संसद की कल्पना भी थी। अगर अश्वेत आन्दोलन विश्व संसद के सपने को अपने आन्दोलन का लक्ष्य बनाये तो यह लक्ष्य और आन्दोलन ज्यादा मजबूत हो सकेगा
4. अश्वेत आन्दोलन करने वाले मित्रों और इसके साथ – साथ समूची दुनिया में समता चाहने वाले मित्रों और आन्दोलनकारियों से मैं अपील करना चाहूँगा कि वे हिंसा और घृणा को त्याग दहिंसा और घृणा पर आधारित आन्दोलन अल्पजीवी होते है वे महात्मा गाँधी, मार्टिर लूथर किंग, नेल्सन मंडेला और डॉ. लोहिया के रास्ते को अपनायें तो आन्दोलन दीर्घजीवी भी बनेगा और जल्दी सफल होगा
मुझे उम्मीद है कि अश्वेत आन्दोलन और दुनिया में फैली विषमता के खिलाफ लड़े जाने वाले सभी आंदोलनकारी मित्र इन मुद्दों पर विमर्श शुरू करेंगे और दुनिया में एक नये विश्व समता आन्दोलन के सहभागी बनेंगेजिसमें अंहिसक सिविल नाफरमानी आधार होगा